Saturday, August 1, 2020

कोरोना वैश्विक महामारी व बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य

कोरोना वैश्विक महामारी व बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य


 कोरोना वैश्विक महामारी ने हमारे जीवन के पक्षों को प्रभावित किया है जिसमें प्रमुख  है हमारी दिनचर्या, सामाजिक संप्रेषण, सामाजिक गतिविधियाँ, काम करने के साधन व तकनीक,  आय व रोजगार के साधन आदि अनेक क्षेत्र है जहां पर बहुत तेज गति से बहुत ही कम समय में  परिवर्तन हुए हैं |  इन परिवर्तनों की गति बहुत ही तेज है जिससे मनुष्य के भावनात्मक व मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ना कोई बड़ी बात नहीं है |  जब हम बच्चों की बात करें तो  उनकी  शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संसार के बदलाव तो और भी गहन है | उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इनका प्रभाव होने की संभावना है | 


       हमारे बच्चे फरवरी-मार्च में अपनी परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त थे वह आगे के भविष्य के सुंदर सपने सजा रहे थे जैसे कि बच्चों का परीक्षा के बाद पहाड़ी यात्रा पर माता-पिता के साथ जाना , नये स्कूल कॉलेज में एड्मिशन लेना आदि | इसके साथ स्कूल के खेलने के मैदान, आने जाने के साधन व कक्षा के सहपाठी, फ्रेंड्स व दोस्तों से न मिल पाना, हां जी हम उम्र बच्चे वह किशोर आपस में बहुत सारे मुद्दों पर बातचीत करते हैं और वे अपनी भाषा में अपनी समस्याओं के हल भी खोज लेते हैं| लेकिन अब छात्र अपने सहपाठियों से नहीं मिल पा रहे | जब  वयस्क ही इस समय पर असहज महसूस कर रहे हैं तो यह समय बच्चों के लिए तो और भी चुनौती पूर्ण है | इस समय में हमारे लिए आवश्यक है कि बच्चों की मानसिक और भावनात्मक आवश्यकताओं को समझें। हमें बच्चों के प्रति आत्मानुभूति रखते हुए उनकी आवश्यकताओं को समझने की कोशिश करनी होगी| जिससे बच्चों को इस चुनौती- पूर्ण समय को समझने व उसका मुकाबला करने की अधिक ऊर्जा मिलेगी | अभिभावकों निम्न बातों का ध्यान रख रखेंगे तो वे आसानी से मदद कर  पाएंगे सकेंगे   

·       इस बदलाव को समझने में बच्चों की मदद करें उन्हें उनकी ही भाषा में समझाएं के लोक- डाउन क्यों किए गए हैं, और स्कूल क्यों बंद हैं |

·       शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान हम जानते हैं की इस शरीर को स्वस्थ रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है की हम शरीर को गतिशील रखें बच्चे प्राकृतिक रूप से अधिक गतिशील  होते हैं वह विद्यालय में बहुत सारी गतिविधियां करते हैं लेकिन जब से स्कूल बंद होने के कारण उनकी गतिविधियां कम हो गई है इसके साथ-साथ उनके पास स्थान और साधनों  की भी कमी है हो गई है|  इसलिए आवश्यक है कि इन्हें गतिविधियों के अवसर माता-पिता उपलब्ध करवाएं |

·       किशोर आपस में बहुत सारे मुद्दों पर बातचीत करते हैं और वे अपनी भाषा में अपनी समस्याओं के हल भी खोज लेते हैं लेकिन अब छात्र अपने सहपाठियों से नहीं मिल पा रहे | तो यह आवश्यक है कि हम बच्चों को सुने और खुले मन के साथ उनको समझने की कोशिश करें साथ ही साथ बच्चों को अपने दोस्तों से बातचीत के लिए फोन वीडियो-कॉल और अन्य माध्यमों का स्वतंत्र पूर्वक उपयोग करने के विवेकपूर्णक अवसर दे |


·       आजकल अध्यापक भी अपने पाठ्यक्रम ऑनलाइन तरीकों के माध्यम से बच्चों को पढ़ा रहे हैं | लेकिन हमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है की हमारे बच्चे अभी शारीरिक मानसिक रूप से चुनौती-पूर्ण  समय का सामना कर रहे हैं ऐसे में पाठ्यक्रम की गति को बच्चों के अनुसार ही रखें क्योंकि अभी हमारे छात्र ऑनलाइन तरीकों से पढ़ना शुरू किया है कुछ छात्रों  के लिए ये बहुत नये  तरीके है |  वह भी नए तरीकों से  के साथ  पढ़ना सीख रहे है इसलिए आवश्यक है कि हम समय दें | अभिभावकों की प्रतिक्रिया में परिवर्तन हुआ है,  क्योंकि पहले हम उन्हें मोबाइल पर कंप्यूटर का सीमित प्रयोग करने को कह रहे थे, रोक भी रहे थे| लेकिन अब हम उन्हें पढ़ने के लिए ऑनलाइन तकनीकों से कह रहे हैं तो यह भी एक बड़ा बदलाव है जिसके साथ सामंजस्य बिठाने में बच्चों को वक्त लगना संभावित है|


·      किशोर छात्र-छात्राओं की बहुत सारी शंकाएं हैं देखा जा रहा है कि किशोरों का व्यवहार चिड़चिड़ा हो रहा है उनके निवारण के लिए उनसे उनके मानसिक स्तर पर जाकर बातचीत करनी होगी और इसके लिए भी हमें वक्त भी लगेगा | उन्हें वक्त दे, बातचीत करें, हर बार केवल कैरियर व शिक्षा  तक अभिभावक बातचीत सीमित ना रखे, उनको क्या पसंद है क्या नापसंद आदि के द्वारा बातचीत करें, जब  आप से बातचीत करेंगे तो आपको भी अच्छा अनुभव होगा और उन्हें भी अच्छा अनुभव होगा |


·       दिनचर्या का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव किशोर छात्र-छात्राओं को दिनचर्या का विशेष ध्यान रखना चाहिए समय भोजन करना, खेलना, पढ़ना लिखना मनोरंजन करना व कम से कम सात-आठ घंटों की नींद लेना आदि एक स्वस्थ दिनचर्या के उदाहरण हैं |


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पवन कुमार